काशी में दो शताब्दियों बाद ऐतिहासिक वैदिक साधना पूर्ण

Historical Vedic Meditation Completed In Kashi

Historical Vedic Meditation Completed In Kashi

Historical Vedic Meditation Completed In Kashi : काशी में लगभग दो सौ वर्षों बाद शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनी शाखा का संपूर्ण एकाकी कंठस्थ दंडक्रम पारायण संपन्न हुआ। वेदपाठ की आठ विधाओं में सर्वाधिक कठिन मानी जाने वाली इस साधना को युवा वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे ने मात्र 50 दिनों में पूरा कर अद्भुत उपलब्धि अर्जित की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी इस सिद्धि की भूरि-भूरि प्रशंसा की, जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने काशी तमिल संगमम के मंच पर उन्हें सम्मानित किया। इससे पूर्व करीब दो सौ वर्ष पहले नासिक के वेदमूर्ति नारायण शास्त्री देव ने यह तप पूरा किया था।

युवा वेदमूर्ति देवव्रत—परंपरा और तपस्या का उज्ज्वल उदाहरण

महाराष्ट्र के अहिल्या नगर के निवासी और वेदब्रह्मश्री महेश चंद्रकांत रेखे के पुत्र, केवल 19 वर्षीय वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे वर्तमान में काशी के रामघाट स्थित सांगवेद विद्यालय में अध्ययनरत हैं। 29 नवंबर को दंडक्रम पारायण की पूर्णाहुति के अवसर पर शृंगेरी शंकराचार्य ने उन्हें सम्मानस्वरूप सोने का कंगन और 1,01,116 रुपये की राशि प्रदान की।

कठोर साधना और अनुशासन से प्राप्त सफलता

वाराणसी के वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय में अध्ययनरत देवव्रत ने 12 अक्तूबर से प्रारंभ होकर 29 नवंबर तक चले इस कठिन तप को अदम्य निष्ठा और अनुशासन से पूरा किया। दंडक्रम पारायणकर्ता अभिनंदन समिति के पदाधिकारियों—चल्ला अन्नपूर्णा प्रसाद, चल्ला सुब्बाराव, अनिल किंजवडेकर, चंद्रशेखर द्रविड़ घनपाठी, प्रो. माधव जर्नादन रटाटे एवं पांडुरंग पुराणिक—ने बताया कि देवव्रत प्रतिदिन साढ़े तीन से चार घंटे नित्य पाठ कर इस दुर्लभ उपलब्धि तक पहुँचे।

प्रधानमंत्री मोदी का अभिनंदन—“पीढ़ियां याद रखेंगी यह तप”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 19 वर्ष की आयु में देवव्रत की यह उपलब्धि प्रेरणादायी है और आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श सिद्ध होगी। उन्होंने बताया कि शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिन शाखा के 2000 मंत्रों वाले ‘दण्डकर्म पारायणम्’ को बिना किसी व्यवधान के 50 दिनों तक पूर्ण करना एक असाधारण साधना है। इतनी पवित्र ऋचाओं और वैदिक शब्दों का पूर्ण शुद्धता से उच्चारण हमारी गुरु-परंपरा की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है। काशी के सांसद के रूप में प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें गर्व है कि यह अलौकिक साधना पावन काशी की धरती पर सम्पन्न हुई।

गुरु-शिष्य परंपरा और भारतीय वैदिक विरासत का गौरव

यह उपलब्धि न केवल एक साधक की व्यक्तिगत विजय है, बल्कि भारतीय वैदिक परंपरा, गुरु-शिष्य संबंध और सांस्कृतिक विरासत के प्रति आस्था व समर्पण का उत्कृष्ट उदाहरण भी है। देवव्रत की इस तपस्या ने काशी और समस्त भारतीय संस्कृति को गौरवान्वित किया है।